दुर्गापूजा :- भारत वर्ष में कई पर्व मनाये जाते हैं| इन्हीं में से एक है दुर्गा पूजा|
इस उत्सव में शक्ति रुपा माँ भगवती की आराधना की जाती है|
देश के अलग-अलग राज्यों में यह पर्व मनाया जाता है|
परंतु पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े स्तर पर होता है|
इस अवसर पर बड़े कलात्मक ढंग से सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश को जन मानस के सामने प्रस्तुत करने के लिए पूजा पंडालों का निर्माण किया जाता है|
जो पंडाल अपने आप अनोखा और अधिक आकर्षक होता है उसे प्रशासन की ओर से पुरस्कृत किया जाता है|
इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं का आयोजन कर समाज को सजग और जागरूक बनाया जाता है|
दुर्गा पूजा को मनाये जाने की तिथियाँ पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार निर्धारित होती हैं
तथा इस पर्व से सम्बंधित पखवाड़े को देवी पक्ष, देवी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता है|
दुर्गा पूजा से जुड़ी मान्यताएं
दुर्गा पूजा के दौरान उत्तर भारत में नवरात्र के साथ ही दशमी के दिन रावण पर भगवान श्री राम की विजय का उत्सव विजयदशमी मनाया जाता है|
उत्तर भारत में इन दिनों में रामलीला के मंचन किये जाते हैं| तो वहीं पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों का दृश्य अलग होता है|
दरअसल यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में ही मनाया जाता है|
मान्यता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के कारण ही इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है|
जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है जो कुछ इस प्रकार है-
हिन्दू पुराणों के अनुसार -
एक समय में राक्षस राज महिषासुर हुआ करता था, जो बहुत ही शक्तिशाली था|
स्वर्ग पर आधिपत्य ज़माने के लिए उसने ब्रह्म देव की घोर तपस्या की|
जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और महिषासुर से वर मांगने को कहा|
राक्षस राज ने अमरता का वर माँगा परंतु ब्रह्मा ने इसे देने से इंकार कर इसके बदले महिषासुर को स्त्री के हाथों मृत्यु प्राप्ति का वरदान दिया|
महिषासुर प्रसन्न होकर सोचा मुझ जैसे बलशाली को भला कोई साधारण स्त्री कैसे मार पायेगी?, अब मैं अमर हो गया हूँ|
कुछ समय बाद वह स्वर्ग पर आक्रमण कर देता है| देवलोक में हाहाकार मच उठता है|
सभी देव त्रिदेव के पास पहुंचते हैं और इस विपत्ति से बाहर निकालने का आग्रह करते हैं|
तब त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया|
यह शक्ति एक स्त्री रूप में प्रकट हुई|
जिन्हें दुर्गा कहा गया|
महिषासुर और दुर्गा में भयंकर युद्ध चला और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया|
तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है|
इस पर्व से जुड़ी एक और मान्यता है कि,
भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा की आराधना कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था|
श्री राम ने दुर्गा पूजा के दसवें दिन रावण का संहार किया, तब से उस दिन को विजयादशमी कहा जाने लगा|
दुर्गा पूजा का महत्त्व
इस पर्व का बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सांसारिक महत्व है|
दुर्गा पूजा नौ दिनों तक चलने वाला पर्व है| दुर्गा पूजा को स्थान, परंपरा, लोगों की क्षमता और लोगों के विश्वास के अनुसार मनाया जाता है|
कुछ लोग इसे पाँच, सात या पूरे नौ दिनों तक मनाते हैं|
लोग माँ भगवती दुर्गा देवी की मूर्ति पूजा "षष्ठि" से शुरु करते हैं, जो "दशमी" के दिन समाप्त होती है|
समाज या समुदाय में कुछ लोग पास के क्षेत्र में पंडाल को सजा कर मनाते हैं|
इन दिनों में, आस-पास के सभी मंदिरों में दुर्गा पाठ, जगराता और माता की चौकी का आयोजन किया जाता है|
कुछ लोग घरों में ही सभी व्यवस्थाओं के साथ पूजा करते हैं और अंतिम दिन होम व विधिवत पूजा कर मूर्ति का विसर्जन जलाशय, कुंड, नदी या समुद्र में करते हैं|
दुर्गा पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2020
दुर्गा पूजा 2020
24 अक्टूबर
अष्टमी तिथि - शनिवार, 24 अक्टूबर 2020
अष्टमी तिथि प्रारंभ - 06:56 बजे (23 अक्टूबर 2020) से
अष्टमी तिथि समाप्त - 06:58 बजे (24 अक्टूबर 2020) तक
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