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कोयले का एक टुकड़ा - koyele ka ek tukda Hindi Story To Overcome Depression

कोयले का एक टुकड़ा

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कोयले का एक टुकड़ा  - आलोक एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का था। वे बचपन से ही बहुत आज्ञाकारी और मेहनती छात्र था।

लेकिन जब से उसने कॉलेज में दाखिला लिया, तब से  उनका व्यवहार बदलने लगा था।

अब न तो वह मेहनत करता था और न ही अपने माता-पिता की बात सुनता था।

यहां तक कि उसने परिवार से झूठ बोलकर पैसे लेने शुरू कर दिए।

उसका बदला हुआ आचरण सभी के लिए चिंता का विषय था। 

जब इसका कारण जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि आलोक बुरी संगत में पड़ गया।

कॉलेज में उसके कुछ दोस्त बन गए हैं, जो फालतू खर्च करते हैं, फिल्में देखते हैं और धूम्रपान करते हैं।

यह जानने पर, सभी ने आलोक से ऐसी मित्रता छोड़ने और अध्ययन और लेखन पर ध्यान देने को कहा। 

लेकिन आलोक का इन बातों से कोई असर नहीं पड़ता, उसका एक ही जवाब होता,

"मैं अच्छे और बुरे को समझता हूं, भले ही मैं ऐसे लड़कों के साथ रहता हूं। 

लेकिन उनका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं है ..."

कोयले का एक टुकड़ा -

दिन बीतते गए और धीरे-धीरे परीक्षा के दिन आ गए। 

आलोक ने परीक्षा से ठीक पहले कुछ मेहनत की, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था।

वह एक विषय में फेल हो गया। हमेशा अच्छे नंबरों से पास होने वाले आलोक के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था।

वह पूरी तरह से टूट चुका था, अब वह न तो घर से निकलता और न ही किसी से बात करता।

दिन-रात बस अपने कमरे में पड़ी कुछ सोचता रहता।

उसकी यह स्थिति देखकर परिवारजन और भी चिंतित हो गया।

सभी ने उसे पिछले परिणाम भूल कर कड़ी मेहनत करने की सलाह दी।

लेकिन आलोक को लगा जैसे सांप सूंघ गया हो। 

वह असफलता के दुःख से उबर नहीं पा रहा था।

जब आलोक के पिछले स्कूल के प्रिंसिपल को इस बारे में पता चला, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। क्योंकि आलोक उनके पसंदीदा छात्रों में से एक थे।

उसकी इस स्थिति को जानकर वह बहुत दुखी हुआ, उन्होंने फैसला किया कि वह आलोक को इस स्थिति से जरूर निकालेंगे।

कोयले का एक टुकड़ा -

इस उद्देश्य के लिए, उन्होंने एक दिन आलोक को अपने घर बुलाया।

प्रिंसिपल साहब बाहर बैठे चिमनी को गर्म कर रहे थे। अमित उनके बगल में बैठ गया।

अमित बिलकुल चुप था, और प्रिंसिपल भी कुछ नहीं कह रहे थे।

दस-पंद्रह मिनट ऐसे ही बीत गए, लेकिन किसी ने एक शब्द नहीं कहा।

फिर अचानक प्रिंसिपल उठे और चिमटे से कोयले का एक खौलता हुआ टुकड़ा निकाल कर मिट्टी में डाल दिया।

वह टुकड़ा कुछ समय तक गर्म रहा लेकिन अंततः ठंडा पड़ बुझ गया।

यह देखकर आलोक उत्सुक हो गया और बोला,  प्रिंसिपल सर, आपने उस टुकड़े को मिट्टी में क्यों डाला, यह बेकार हो गया।

यदि आप इसे चिमनी में रहने देते हैं, तो अन्य टुकड़ों की तरह गर्मी देना भी उपयोगी होता । "

प्रिंसिपल साहब मुस्कुराए और बोले, "बेटा, बाहर कुछ देर चिमनी में रहने के बाद, वह टुकड़ा बर्बाद नहीं हुआ। 

लो मैं उसे फिर से चिमनी में डाल दिया।

जैसे ही वह चिमनी केअन्दर गया, वह टुकड़ा वापस जलने लगा और फिर से गर्मी प्रदान करने लगा।

कोयले का एक टुकड़ा -

"कुछ समझे आलोक।" "प्रिंसिपल ने कहा," तुम कोयले के उस टुकड़े की तरह हैं।

पहले, जब आप अच्छी संगत में रहते थे, कड़ी मेहनत करते थे, माता-पिता की बात मानते थे, तब आप अच्छे नंबरों से पास होते थे।

लेकिन जैसा कि वह टुकड़ा थोड़ी देर के लिए मिट्टी में चला गया और बुझ गया, आप भी गलत संगत में गिर गए और परिणामस्वरूप फेल हो गए।

लेकिन यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बार जब आप असफल हो जाते हैं, तो आपके अंदर के सभी गुण समाप्त नहीं होते हैं।

जैसे कोयले का वह टुकड़ा कुछ समय तक मिट्टी में पड़ा रहने के बाद बेकार नहीं गया और जब वापस चिमनी में डाला गया तो जल उठा।

उसी तरह तुम भी अच्छी संगत में वापस जा सकते हैं और कड़ी मेहनत कर सकते हैं ।

और एक बार फिर से मेधावी छात्रों की श्रेणी में आ सकते हैं।

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