दीना का दोस्त चिड़िया
DINA KA DOST CHIDIYA
दीना बहुत सीधा-सादा मेहनत करने वाला किसान था। वह इस दुनिया में एकदम अकेला था क्योंकि उसके माँ-बाप बचपन में ही मर गये थे।
वह दिन भर खेतों में मेहनत करता और शाम को सूखी रोटी खा कर सो जाता।
उसके के घर के पीछे अमरूद के पेड़ों का एक बड़ा-सा बगीचा था।
उस बगीचे के हर पेड़ में फलने वाले अमरूद बहुत मीठे होते। दीना अक्सर खेत के काम से खाली होने पर उस बगीचे में जाकर आराम करता।
एक दिन दोपहर में दीना अमरूद के बगीचे में एक पेड़ के नीचे लेटा था।
अचानक एक बहुत सुन्दर सी छोटी चिड़िया उसे सामने के पेड़ पर दिखायी पड़ी।
उसने सोचा यह चिड़िया तो बहुत सुन्दर है।मैं क्यों न इसे पकड़ कर घर ले चलूं और पिंजरे में पाल लूँ।
बस यह बात दिमाग में आते ही वह पेड़ के पास पहुंचा और हाथ बढ़ा कर उसने चिड़िया को पकड़ लिया।
चिड़िया उसके हाथ में तड़पने लगी। दीना बोला ‘‘चिड़िया रानी अब तुम मेरे घर चल कर आराम से रहो।
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वहां मैं तुम्हें अच्छी-अच्छी चीज़ें खिलाऊँगा।’’
‘‘दीना भाई मुझे छोड़ दो....छोड़ दो...’’ चिड़िया आदमियों की तरह बोली।
‘‘अरे वाह तुम तो हम लोगों की तरह बोल रही हो?’’ उसने आश्चर्य से बोला।
“हां मैं आदमियों की तरह बोल लेती हूँ। पर तुम मुझे छोड़ दो। मेरे पंख टूट जाएंगे।” चिड़िया ने रोते हुए कहा।
“अरे, रानी अब तुम मेरे घर चल कर रहो। मैं तुम्हें पिंजरे में रखूँगा।
लोग तुम्हारी बोली सुनकर खुश हो जायेंगे।’’ उसने प्यार से पुचकारता हुआ बोला।
‘‘मैं तो पिंजरे तक पहुंचने से पहले ही मर जाउंगी।
तुम मुझे जल्दी से छोड़ दो’’ चिड़िया और ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए बोली।
‘‘अच्छा मैं तुम्हें छोड़ दूं तो तुम मुझे क्या दोगी?’’ उसने पूछा।
‘‘अगर मुझे तुम छोड़ दोगे तो मैं तुम्हारी हर मुसीबत में सहायता करूंगी। कभी तुम्हारे ऊपर संकट आए मुझे याद कर लेना।
मैं फौरन तुम्हारी सहायता करने आ जाऊंगी।’’ चिड़िया बोली।
चिड़िया का रोना सुनकर दीना के मन में दया आ गयी। उसने चिड़िया को छोड़ दिया।
चिड़िया उड़कर फिर पेड़ पर जा बैठी और गाना गाने लगी। दीना भी उठ कर खेत की तरफ चला गया।
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इस घटना को बहुत दिन बीत गये। एक दिन अचानक गांव वालों पर एक बड़ी मुसीबत आ गयी।
कहीं से एक राक्षस गांव में आ गया।
उसने खूब चिल्ला चिल्लाकर सारे गांव वालों को एक जगह इकट्ठा किया और उनसे कहा,
‘‘मेरे गांव में सूखा पड़ गया है इसलिए मैं यहाँ तुम्हारे गांव में ही रहूंगा।
तुम लोग मुझे रोज़ ढेर सारा खाना दे दिया करो। नहीं तो मैं तुम्हारे जानवरों को खा जाऊंगा।’’
गांव वाले राक्षस की बात सुनकर डर गये।
उन लोगों ने काफी सोच विचार कर तय किया कि रोज़ एक किसान अपने घर पर राक्षस को खाना खिला देगा।
नहीं तो राक्षस उनके पालतू जानवरों को खा लेगा।राक्षस आराम से उसी गांव में रहने लगा।
धीरे-धीरे गांव के लोग गरीब होने लगे। क्योंकि जिस किसी के घर राक्षस खाना खाता उस किसान का पूरा अनाज ख़त्म हो जाता।
सभी उस राक्षस से दुःखी हो गये थे। बहुत दिनों के बाद दीना की बारी आयी। दीना तो बहुत दुःखी हो गया।
वह सोचने लगा कि कैसे वह राक्षस का पेट भर पाएगा? उसे तो खुद ही कभी-कभी भूखा रहना पड़ता है।
वह सोचने लगा कि कैसे इस मुसीबत से उसे छुटकारा मिले।
अचानक दीना को छोटी चिड़िया की याद आयी। वह तुरन्त अमरूद के बाग में गया।
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वहां उसे चिड़िया नहीं दिखायी पड़ी।
वह एक पेड़ के नीचे बैठकर चिडि़या के बारे में सोचने लगा। अचानक चिडि़या फुदकती हुई उसके सामने आ गयी।
दीना खुश हो गया। दीना ने चिड़िया को अपनी समस्या बतायी।
चिड़िया ने उसे समझाकर कहा,‘‘दीना भाई इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है।
मैं तुम्हें एक अमरूद देती हूँ।उसे राक्षस को खिला देना।’’
चिड़िया की बात सुनकर दीना हंसने लगा और बोला, ‘‘अरे चिड़िया रानी एक अमरूद से क्या होगा?
राक्षस तो सारे बगीचे का अमरूद खा जाएगा।’’
‘‘नहीं दीना तुम ले तो जाओ। उस एक अमरूद से उसका पेट भर जाएगा।
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वह फिर कभी तुमसे खाना नहीं मांगेगा।’’ चिड़िया बोली और उसने अपनी नन्हीं सी चोंच से एक अमरूद जूठा करके दीना को दे दिया। दीना वह अमरूद लेकर घर लौट आया।
अगले दिन ठीक समय पर राक्षस दीना के घर आ गया। दीना ने उसे आंगन में बिठाया और उसे खाने के लिए ढेर सारा खाना दिया, साथ ही वह अमरूद भी।
राक्षस ने पहले खाना खाया फिर अमरूद हाथ में लेकर उसे ध्यान से देखने लगा।
क्योंकि उसने पहले कभी न तो अमरूद देखा था न ही खाया था।
जब उसने अमरूद को मुंह में रख कर खाना शुरू किया तो उसे उसका स्वाद बहुत मीठा और अच्छा लगा।
वह अमरूद खाकर खूब खुश हुआ और दीना से बोला, ‘‘अरे दीना तुम्हारा यह खाना तो बहुत मीठा है। इसकी मिठास से तो मेरा मन ही भर गया।
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तुमने आज मुझे इतनी बढि़या चीज़ खिला दी है कि मैं बता नहीं सकता। मैं तुमसे बहुत खुश हूँ।
तुम अगर कोई चीज़ मुझसे आज मांगना चाहो तो मांग लो। आज मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर दूंगा।’’
दीना ने कहां, ‘‘नहीं मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। मेरे पास सब कुछ है।’’
‘‘फिर भी आज तो तुम्हें कुछ मांगना होगा।’’ राक्षस बोला।
‘‘अगर तुम मेरा कुछ भला करना ही चाहते हो तो हमारा गांव छोड़ कर चले जाओ। क्योंकि तुम्हारे आने के बाद से यहां के लोग गरीब होते जा रहे हैं।
सारा अनाज तुम खा जाता हो। इसलिए अगर तुम कहीं और चले जाओ तो इससे बड़ा फायदा हमें दूसरा नहीं होगा।’’ दीना राक्षस के सामने हाथ जोड़ कर बोला।
राक्षस दीना की दावत से इतना खुश हो गया था कि उसने दीना की यह बात भी मान ली।
और वह उसी दिन वह गांव छोड़कर अपने गांव लौट गया। गांव के लोग फिर सुखी हो गये। दीना भी आराम से खेती करने लगा।
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