परिवर्तन प्रकृति का नियम और जीवन का आधार
परिवर्तन:- नीलिमा जब से मेरी जिंदगी में आई, जब से मैंने देखा कि उसे सजने संवरने का, मौज- मस्ती का, खर्चे का बहुत शौक रहा है।
अपनी जिंदगी को बहुत ही जिंदादिली से जीना चाहती थी नीलिमा।
आज भी याद है मुझे जब पहली बार मैं उससे मिला था ...
तो भी उसने बहुत ही स्टाइलिश ड्रेस, वैसे ही मैचिंग जूते, श्रृंगार की चीजें पहनी हुई थी, लेकिन सलीके के साथ।
बहुत सुंदर लग रही थी वह। उसके बाद मुलाकातों का दौर शुरू हुआ,
और जितना मैंने उसे जाना बहुत ही बिंदास लड़की थी, लेकिन अपनी मर्यादाओं का पालन भी उसी शिद्दत के साथ करती थी।
अपनी पसंद और अपनी इच्छाओं को भी साथ- साथ लेकर चलती थी।
यही कहती थी कि .....
"अरे जिंदगी तो एक ही मिली है। मेरे मरने के बाद मुझे कौन याद करने वाला है ?
और उसका मुझे क्या फायदा मिलेगा ?
जीते जी मैं अपने शौक तो खुद ही पूरे करूंगी ना, मुझे क्या चाहिए,
यतो सिर्फ मैं ही जान सकती हूं, बता सकती हूं ना
और जहां तक हो सकता है मैं दूसरों की इच्छाओं का और अपने कर्तव्यों का भरपूर सम्मान करती हूं।
परिवर्तन प्रकृति का नियम:-
तो फिर मेरी खुशी से जीने में किसी को कोई आपत्ति क्यों होगी।"
इस तरह की थी नीलिमा।
शादी के बाद भी शुरु-शुरु में उसने सभी शौक पूरे करने का सिलसिला जारी रखा।
मानो अपनी छोटी सी बाहों में पूरे आसमान को, पूरी कायनात को समेटना चाहती थी। हम दोनों ही बहुत खुश थे।
फिर हमारी खुशी का 'परिणाम' सामने आया और नीलिमा गर्भवती हुई।
धीरे-धीरे एक लड़की को औरत बनते मैंने इस कदर पहली बार देखा था।
किस तरह एक मस्त मौला लड़की छोटी-छोटी जिम्मेदारियों को और ज्यादा गहराई से समझने लग गई थी।
किस तरह उस में ममता, त्याग के भाव जागने लगे थे। किस तरह दूसरों की खुशी को ज्यादा महत्व देने लगी थी।
धीरे धीरे वह समय भी आया जब हमारी प्रथम संतान 'सपना' हमारी गोद में आई।
पहली बार जब मैं उसे देखने नर्सिंग होम गया तो नीलिमा का जो परिवर्तित रूप मैंने देखा उसका वर्णन करना मेरी शब्द सीमा से बाहर है।
किस तरह एक लड़की एक मां बन कर अपने आप में सब कुछ समेट लेती है।
जब नीलिमा के घर आने पर मैंने उसका स्वागत करने के लिए और
उसके मां बनने पर उसे सोने की चैन तोहफे में दी तो प्रत्युत्तर में जो उसने कहा उसे सुनकर मैं ठगा सा रह गया। उसने कहा ....
"बहुत सुंदर है, संभाल कर रख दो। इसकी शादी में काम आएगी। अभी से जोड़ना शुरू करेंगे तभी तो काम बनेगा।"
एक दिन में इतना.... 'परिवर्तन'... शायद ही कभी देखने को मिला होगा।
परिवर्तन प्रकृति का नियम:-
कहां एक लड़की जो सिर्फ अपने लिए जीती थी,
एक ही दिन में लड़की की मां होने पर उसमें इतना विशाल परिवर्तन उसकी सोच में,
उसकी भावनाओं में, उसके प्रेम में, उसकी ममता में, उसके त्याग में और क्या कहूं मैं।
यही है एक लड़की की मां होने का दायित्व और अनकहा, अबूझा 'परिवर्तन'।
यही परिवर्तन सृष्टि को आधार प्रदान करता है और हम सब को, इस समाज को एक अदृश्य बंधन में बांधे रखता है।
यह परिवर्तन अवश्यंभावी है, सृष्टि चक्र को चलाने के लिए और यह सब देख कर मैं नतमस्तक हूं उस ईश्वर के सामने जो
इन सबको बड़े ही सहज ढंग से अनादि काल से चलाता आ रहा है
और आगे भी ऐसे ही चलाए मान बनाए रखेगा,.... कब तक.... नहीं पता।
यह 'परिवर्तन' प्रकृति का नियम है और जीवन का आधार।
इसी परिवर्तन में सभ्यताएं, संस्कृतियां, रीति रिवाज सब कुछ पनपता है, कई नवांकुर प्रस्फुटित होते हैं
और समय का पोषण प्राप्त कर पुष्पित, पल्लवित होते हैं ।
यह 'परिवर्तन' सार्थक है, सफल है, सुखदायक है, फलदायक है, संतुष्टि दायक है और क्या कहना......
फिर इन्हीं सब के साथ हम सृष्टि चक्र में बंधे हुए हैं, उसी के साथ चल रहे हैं, बह रहे हैं निर्बाध गति से.......
एक नए 'परिवर्तन' की ओर ...... निरंतर, अग्रसर हो रहे हैं एक सफल कल्याणकारी 'परिवर्तन'..... संतुष्टि दायक 'परिवर्तन'..... की ओर ....।
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