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गुरुसे दो शब्द बोल सकते थे - guruse do shabd bol sakthe the

गुरुसे दो शब्द बोल सकते थे

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गुरुसे दो शब्द बोल सकते थे - बहुत समय पहले, एक प्रसिद्ध गुरु अपने मठ में शिक्षा दान करते थे।

लेकिन यहां पढ़ाने का तरीका अलग था।

गुरु का मानना था कि सच्चा ज्ञान केवल मौन रहकर ही आ सकता है।

और इसीलिए मठ में मौन रहने का नियम था।

लेकिन इस नियम का एक अपवाद भी था, दस साल पूरे होने पर एक शिष्य गुरु से दो शब्द बोल सकता था।

पहले दस साल बिताने के बाद एक शिष्य गुरु के पास पहुंचा।

गुरु को पता था कि आज उनके दस साल पूरे हो गए हैं। उन्होंने शिष्य को दो उंगलियां दिखाते हुए अपनी दो शब्द कहने का इशारा किया।

शिष्य ने कहा, " भोजन गंदा "

गुरु ने ' हाँ ' में सिर हिला दिया।

इसी प्रकार दस और वर्ष बीत गए और एक बार फिर वो शिष्य अपने दो शब्द कहने के लिए गुरु के पास पहुंचा।

"बिस्तर कठोर ", शिष्य ने कहा।

गुरु ने एक बार फिर ‘हाँ’ में सर हिला दिया।

दस और साल बीत गए, और इस बार वो शिष्य ने गुरु से मठ छोड़ने की आज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुआ और कहा, "नहीं होगा "।

"जानता था", गुरु ने कहा, और उसे जाने की अनुमति दे दी।

और मन ही मन सोचा, थोड़ा मौका मिलने पर जो शिकायत करता है, वह ज्ञान कहाँ से प्राप्त कर सकता है?

गुरुसे दो शब्द बोल सकते थे -

दोस्तों, बहुत से लोग केवल शिकायत करने में ही अपना जीवन बिता देते हैं। 

और अपने लक्ष्य से उस शिष्य की तरह चूक जाते है।

शिष्य ने पहले दस साल केवल ये बताने के लिए इंतज़ार किया कि खाना गन्दा है ।

यदि वह चाहता, तो इस समय में वह खुद खाना बनाना सीख कर, अपने लिए और अन्य लोगों के लिए अच्छा खाना बना सकता था।

चीजें बदल सकता था । हमें यही करना चाहिए।

हमें शिाकयात के बजाय चीजों को सही करने की दिशा में काम करना चाहिए।

और शिाकयात करने के बजाय, "हमें स्वयं वह बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं।

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